नई दिल्ली: प्रशांत महासागर में स्थित तुवालु नामक एक द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का सामना कर रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने से यह देश धीरे-धीरे डूब रहा है और आशंका है कि 2050 तक यह पूरी तरह से नक्शे से गायब हो जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित तुवालु, नौ छोटे-छोटे द्वीपों (एटॉल) से मिलकर बना है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्र तल से मात्र 2 मीटर है। पिछले तीन दशकों में यहाँ समुद्र का स्तर 15 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है, जो वैश्विक औसत से डेढ़ गुना अधिक है। इस वजह से यहाँ के लगभग 11,000 निवासियों पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, 2050 तक तुवालु का मुख्य द्वीप फुनाफुटी का आधा हिस्सा पानी में डूब जाएगा। इस द्वीप पर देश की 60% आबादी रहती है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए तुवालु और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2023 में एक समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, 2025 से हर साल 280 तुवालु निवासियों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से बसाया जाएगा, ताकि द्वीप के पूरी तरह डूबने से पहले ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।
समुद्र के खारे पानी के रिसाव से तुवालु के भूजल स्रोत भी दूषित हो गए हैं, जिससे पीने के पानी की भारी कमी हो गई है। यहाँ के लोग बारिश के पानी को इकट्ठा करके अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करते हैं। खारे पानी के कारण फसलों को उगाना भी मुश्किल हो गया है, जिससे खाद्य सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
इन गंभीर परिस्थितियों के चलते तुवालु के लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। जल संकट और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण यहाँ के लोग बच्चे पैदा करने से भी डर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। तुवालु की स्थिति जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का एक जीता-जागता उदाहरण है, जो दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों के लिए एक चेतावनी है।
View this post on Instagram
This country will slowly disappear from the world map