PLN- विराट ब्रिगेड इन दिनों मिशन वर्ल्ड कप-2019 पर है. भारतीय प्रशंसक एक और वर्ल्ड कप की उम्मीद लगाए बैठे हैं. हर तरफ एक ही सवाल है- क्या भारतीय टीम 1983 की तरह इस बार भी लॉर्ड्स में वर्ल्ड कप ट्रॉफी थामेगी? फिलहाल मौजूदा वर्ल्ड कप में टीम इंडिया मजबूती से आगे बढ़ रही है और उसका सेमीफाइनल में पहुंचना लगभग तय है. वैसे, आज का दिन भारत के उस कारनामे को याद करने का दिन है, जब उसने क्रिकेट की दुनिया में अपनी धाक जमाई थी.
36 साल पहले आज ही के दिन भारत लॉर्ड्स में वर्ल्ड कप चैंपियन बना था. 25 जून 1983 का दिन भारतीय खेलों के इतिहास में कभी न भूलने वाला दिन है. वेस्टइंडीज पर भारत ने फाइनल में 43 रनों से हैरतअंगेज जीत दर्ज कर पहली बार वर्ल्ड कप पर कब्जा जमाया था. पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने उम्मीदों के विपरीत चौंकाने वाला प्रदर्शन कर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड तथा वेस्टइंडीज जैसी दिग्गज टीमों को धूल चटाते हुए विश्व चैम्पियन बनकर दिखाया था.
इंडीज के चैम्पियन बनने की हैट्रिक का सपना तोड़ा
फाइनल में एक ओर थी दो बार खिताब जीतने वाली वेस्टइंडीज की टीम, तो दूसरी ओर थी पिछले दोनों विश्व कप में खराब प्रदर्शन करने वाली भारतीय टीम. वेस्टइंडीज ने भारत को सिर्फ 183 रनों पर समेट दिया. इंडीज के लिए यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं था, लेकिन बलविंदर सिंह संधू ने गॉर्डन ग्रीनिज को सिर्फ एक रन पर बोल्ड कर भारत को जबरदस्त सफलता दिलाई. हालांकि इसके बाद विवियन रिचर्ड्स ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए 33 रन ठोंक डाले.
कप्तान कपिल ने लपका रिचर्ड्स का अद्धभुत कैच
इसी दौरान रिचर्ड्स ने मदन लाल की गेंद पर अचानक मिड विकेट की तरफ एक ऊंचा शॉट खेला. कपिल ने अपने पीछे की तरफ लंबी दौड़ लगाते हुए एक अद्धभुत कैच लपक लिया. रिचर्ड्स का आउट होना था कि वेस्टइंडीज की पारी बिखर गई.
आखिरकार पूरी टीम 140 रनों पर सिमट गई. मदन लाल ने 31 रन पर तीन विकेट, मोहिंदर अमरनाथ ने 12 रन पर तीन विकेट और संधू ने 32 रन पर दो विकेट लेकर लॉयड के धुरंधरों को ध्वस्त कर दिया था. अमरनाथ सेमीफाइनल के बाद फाइनल में भी अपने ऑलराउंड प्रदर्शन से मैन ऑफ द मैच रहे. इस ऐतिहासिक सफलता के बाद टीम इंडिया ने महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में 28 साल बाद 2011 में दोबारा वनडे वर्ल्ड कप जीतने का कारनामा किया.
1983 के वर्ल्ड कप की जीत के टर्निंग प्वॉइंट
जिम्बाब्वे के खिलाफ खेलते हुए भारत ने 17 रन के अंदर 5 विकेट गंवा दिए। अगर उस मैच में कपिल देव 175 रन की पारी नहीं खेलते और टीम वो मैच हार जाती तो टीम इंडिया की लगातार तीसरी हार होती। इससे टीम इंडिया का मनोबल टूटता। जिम्बाब्वे के बाद उसका अगला मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से था। ऑस्ट्रेलिया से टीम इंडिया पहले ही एक मैच हार चुकी थी। जिम्बाब्वे के खिलाफ जीत का असर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी देखने को मिला। ऑस्ट्रेलिया पर जीत के साथ ही टीम इंडिया सेमीफाइनल और फिर फाइनल में पहुंची।
वेस्टइंडीज के खिलाफ फाइनल मैच में टीम इंडिया सिर्फ 183 रन बना सकी, जो फाइनल के हिसाब से बहुत कम स्कोर था। इस मैच में लक्ष्य का पीछा करते हुए उतरी वेस्टइंडीज की टीम की शुरुआत खराब रही लेकिन बाद में विवियन रिचर्ड्स ने पारी को संभाला। रिचर्ड्स आक्रामक तरीके से बल्लेबाजी कर रहे थे। वे 7 चौके लगा चुके थे। लेकिन तभी मदनलाल की गेंद पर रिचर्ड्स ने मिड विकेट की तरफ शॉट मारा। लेकिन मिड ऑन की तरफ खड़े कपिल देव ने पीछे की ओर भागते हुए उस कैच को लपक लिया था। फाइनल मैच का यही कैच था, जिसने टीम इंडिया को जीत दिलाई।