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महात्मा हंसराज जी की 156वीं जयंती पर पद्मश्री पूनम सूरी जी ने दिया 35 लाख स्टूडेंट्स व हज़ारों टीचर्स को खास संदेश . आओ जानें महात्मा हंसराज जी के जीवन से जुड़ी हुई यह दस खास बातें – नीचे पढ़ें पूरी NEWS व देखें VIDEO

 

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आओ महात्मा जी के अवतरण दिवस पर DAV के परम आदरणीय पद्मश्री पूनम सूरी जी (President – DAV कॉलेज मैनेजिंग कमेटी न्यू दिल्ली) ने क्या कुछ कहा  – सुने video 35 लाख स्टूडेंट्स व टीचर्स के लिए खास संदेश 

【अमन बग्गा – 9876410210】

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(PLN)महर्षि दयानन्द सरस्वती, वैदिक धर्म व आर्यसमाज की विचारधारा को आदर्श मानकर जिस व्यक्ति ने अपना जीवन देश व समाज से अज्ञान, अशिक्षा व अविद्या को दूर करने में समर्पित किया उसे हम महात्मा हंसराज जी के नाम से जानते हैं।

जो मनुष्य अपने जीवन में धन-सम्पत्ति एवं अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करता है उसका जीवन कुछ कष्टमय अवश्य होता है। छोटे-छोटे त्याग के कामों का उतना महत्व नहीं होता जितना अपने अधिकांश व प्रायः सभी सुखों के त्याग करने का होता है। इसी कारण देश के लिये बलिदान देने वालों को सर्वत्र नमन करने सहित उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखकर उनसे प्रेरणा ग्रहण की जाती है।

जालंधर HMV कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ अजय सरीन जी ने महात्मा हंसराज जी को श्रद्धासुमन भेंट कर उन्हें श्रद्धांजलि अपर्ण की है और विद्यार्थियों व अध्यापकों को बधाई दी है।

आओ जानें महात्मा हंसराज जी के जीवन से जुड़ी हुई यह दस खास बातें

1. 22 वर्ष की उम्र में महात्मा हंसराज जी ने किया जीवन समर्पण

ऋषि दयानन्द की 30 अक्तूबर, सन् 1883 में मृत्यु होने पर उनके विचारों के अनुरूप शिक्षा का प्रचार करने के लिए जिस स्कूल व कालेज की स्थापना का प्रस्ताव आर्यसमाज, लाहौर की ओर से किया गया था उसको आगे बढ़ाने और सफल करने के लिये लगभग 22 वर्षीय महात्मा हंसराज जी ने 27 फरवरी, सन् 1886 को अपने जीवन-दान करने की घोषणा की थी। इसका सुखद परिणाम यह हुआ था कि आर्यसमाज लाहौर के द्वारा दयानन्द ऐंग्लो वैदिक स्कूल स्थापित हो सका था जिसने समय के साथ उन्नति करते हुए देश से अविद्या दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2.आजीवन बिना कोई वेतन लिये तन व मन से स्कूल व कालेज की सेवा का जो महाव्रत लिया

महात्मा हंसराज जी ने 27 फरवरी, 1886 को आर्यसमाज लाहौर में महर्षि दयानन्द जी की स्मृति में स्थापित होने वाले डी.ए.वी. स्कूल व कालेज के प्राचार्य का दायित्व संभालने एवं अपना जीवन-दान देने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि वह डी.ए.वी. शिक्षा आन्दालेन के लिये अपना जीवनदान कर रहे हैं और अवैतनिक सेवा देंगे। उनकी इस घोषणा से डी.ए.वी, स्कूल की स्थापना में अत्यन्त लाभ हुआ।

लेकिन इस व्रत से उनके अपने परिवार के सदस्यों सहित उनके अपने भाई व उनके परिवार के सदस्यों को भी कठोर साधना एवं कष्टो का जीवन व्यतीत करना पड़ा। महात्मा जी ने एक गृहस्थी होते हुए अपने इस महाव्रत का पालन करके एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी उपमा हमें कहीं दिखाई नहीं देती। 

3.होशियारपुर में 19-4-1864 को हुआ था इस महान महात्मा का अवतरण

 महात्मा जी का जन्म नही बल्कि ऐसे महान आत्मा का धरती पर अवतरित होते है। 

उन का अवतरण 19-4-1864 को ग्राम बजवाड़ा जिला होशियारपुर में लाला चुन्नीलाल जी के यहां हुआ था। 15 वर्ष की अवस्था में आर्यसमाज, लाहौर के प्रधान लाला साईंदास जी के सत्संग से उन पर आर्यसमाज का रंग चढ़ा।

4.इसी लिए तो ऐसे महान आत्मा को लोग महात्मा कहते है।

 सन् 1885 में गवर्नमेन्ट कालेज, लाहौर से बी0ए0 पास किया था। वह पंजाब में मेरिट में दूसरे स्थान पर थे। उन दिनों पंजाब में भारत के पंजाब, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली के कुछ भागों सहित पूरा पश्चिमी पाकिस्तान भी सम्मिलित था। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि महात्मा हंसराज कितनी उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी थे। यदि वह अंग्रेजों की नौकरी करना चाहते तो बड़े से बड़ा पद उनको मिल सकता था। आर्थिक प्रलोभनों में न फंसना और उन पर पूर्णतः विजय पाना अति दुष्कर कार्य है जिसे विरले ही कर पाते हैं। इसी कारण हंसराज जी के नाम के साथ ‘महात्मा’ शब्द जुड़ा है जो एक वास्तविक महात्मा के सच्चे आदर्श रूप को प्रस्तुत करता है।

 5.विभिन्न सभाओं के प्रधान बनें

 1 जून, सन् 1886 को महात्मा जी डी.ए.वी. स्कूल के मुख्याध्यापक बने। सन् 1891 में आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान बने। इसके दो वर्ष बाद आर्य प्रादेशिक सभा के प्रधान बने।

सन् 1918 में पंजाब शिक्षा सम्मेलन के अध्यक्ष बनाये गये। सन् 1924 में अखिल भारतीय शुद्धि सभा के प्रधान बनाये गये। सन् 1927 में प्रथम आर्य-महासम्मेलन का आयोजन हुआ था।  इस महासम्मेलन के अध्यक्ष बनाये गये थे। सन् 1933 में पंजाब प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रधान बनाया गया था। सन् 1937 में आर्य प्रादेशिक सभा के प्रधान थे।

6. भूकम्प, दुष्काल, बाढ़, दंगो, महामारी में राहत शिविर

स्कूल व कालेज का काम करते हुए तथा अन्य सामाजिक दायित्वों को सम्भालते हुए देश में जब-जब कहीं भूकम्प, दुष्काल, बाढ़, दंगो, महामारी आदि समस्यायें व आपदायें आयीं तो उन्होंने पीड़ित बन्धुओं की सेवा व सहायता के लिये वहां आर्यसमाज के अपने सहयोगियों द्वारा शिविर स्थापित करवाकर लोगों के दुःखों को दूर करने का प्रयास किया।

7.आओ जानें महात्मा हंसराज जी का दिनचर्या

                महात्मा हंसराज जी की दिनचर्या को जानना भी हमारे लिये उपयोगी है। वह प्रातःकाल जल्दी उठा करते थे। सूर्योदय से पूर्व ही वह शौच, स्नान, सन्ध्या तथा यज्ञ आदि कर लिया करते थे। वायु सेवन के लिये महात्मा जी प्रातः बाहर भ्रमण के लिये जाया करते थे। यदा-कदा डम्बल का व्यायाम भी किया करते थे। इसके बाद महात्मा जी स्वाध्याय किया करते थे। ऋषि के ग्रन्थों सहित वेदों का स्वाध्याय करना उनके जीवन का अंग था। वह ठीक समय पर अपने डीएवी कालेज जाया करते थे। वह ऐसे प्राचार्य थे जो अपने विद्यार्थियों को पढ़ाया भी करते थे। वह धर्म शिक्षा भी पढ़ाते थे और हिन्दी न जानने वालों को हिन्दी की वर्णमाला भी सिखाया करते थे। कालेज से घर आकर कुछ समय विश्राम किया करते थे। इसके बाद महात्मा जी कालेज व आर्यसमाज के लोगों से भेंट भी किया करते थे। सांयकाल की सन्ध्या वह छात्रावास में विद्यार्थियों के साथ बैठकर किया करते थे। कालेज से स्वैच्छिक सेवा निवृति लेने के बाद भी वह सायं की सन्ध्या विद्यार्थियों के साथ ही किया करते थे। सायं खाली समय में वह निकटवर्ती आर्यसमाज के उत्सवों में जाया करते थे। रात्रि भोजन के बाद जो विद्यार्थी, मित्र व श्रद्धालु उनसे मिलने आते थे, उनसे बातें भी किया करते थे। कालेज के अवकाश के दिनों में वह दूर व पास के आर्यसमाज के उत्सवों में जाया करते थे।

8.ऐसे हुए थे महात्मा हंसराज ब्रह्मलीन

 सन् 1938 में उनकी आयु का 74 वां वर्ष पूरा होकर 75 वां वर्ष आरम्भ हुआ था। आपने जीवन भर जो कठोर तपस्या व साधना की थी उसके कारण शरीर कमजोर व वृद्ध हो गया था। वह मृत्यु से कुछ समय पूर्व हरिद्वार के मोहन राकेश आश्रम में आये थे जहां उन्हें उदर-शूल का रोग हो गया था। यहां से वह लाहौर लौट आये। कुछ समय हिमाचल प्रदेश सोलन में अपने एक भक्त लाला यशवन्तराय एम.ए. के पास भी रहे। लाभ न होने पर पुनः लाहौर आ गये। योग्य डाक्टरों ने महात्मा जी की चिकित्सा की परन्तु लाभ नहीं हो रहा था। परिवारजनों व भक्तों ने भी उनकी बहुत देखभाल व सेवा की। महात्मा आनन्द स्वामी जी ने उन्हें कहा था कि अभी आपकी बहुत आवश्यकता है। महात्मा जी ने उत्तर दिया ‘होगी! परन्तु जब समय आ जाता है तो फिर आश्यकता नहीं देखी जाती। प्रभु की इच्छा पूर्ण होती है।’

9. ‘‘ओ३म्” का उच्चारण

 रोग के चलते 15 नवम्बर, सन् 1938 को महात्मा जी का लाहौर में देहावसान हो गया। ‘‘ओ३म्” का उच्चारण करते हुए और वेदों के पवित्र मंत्रों का पाठ सुनते हुए वह संसार से चले गये।

10.उनका अन्तिम सन्देश

 “ऊंचे व्यक्तियों के बलिदान से ही यह कार्य (आर्यसमाज सफल) हो सकता है।”

PUNJAB LIVE NEWS (PLN)के चीफ एडिटर अमन बग्गा की तरफ से ऐसे महान आत्मा को कोटि कोटि नमन

महात्मा जी के जाने से आर्यसमाज का एक देदीप्यान नक्षत्र अस्तांचल में छिप गया। जब तक यह सूर्य, चन्द्र व पृथिवी है, महात्मा हंसराज जी का यश व कीर्ति अमर रहेगी। हम महात्मा हंसराज जी को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हैं।

और ईश्वर से प्रार्थना करते है हमें सद्बुद्धि व शक्ति दें ताकि हम सब महात्मा जी के बताए मार्ग पर हम अपना जीवन अग्रसर कर सकें – पत्रकार अमन बग्गा