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आपातकाल के 44 साल : ये थे 21 महीने तक लगे आपातकाल के दो सब से बड़े कारण, 1 लाख लोग हुए थे गिरफ्तार, छीन ली गयी थी प्रेस की आज़ादी, 1 करोड़ लोगों की जबरन कर दी गई थी नसबंदी, जानियें इमरजेंसी की ये खास बातें

 

आज 44 साल पूरे हो गए हैं। वैसे तो भारतीय राजनीति में कई मौके ऐसे आते हैं, जब इमरजेंसी के मुद्दे पर खूब सियासत होती है। बीजेपी ने ‘काला दिवस’ मनाने का ऐलान किया है। साल 1975 में 25-26 जून की आधी रात को देश में आपातकाल लगाया गया था। जब-जब इमरजेंसी की बात की जाती है लोगों के अंदर कांग्रेस पार्टी के प्रति गुस्सा साफ नजर आता है। साथ ही इमरजेंसी एक ऐसा दाग है, जो कांग्रेस पार्टी के दामन से 44 साल बाद भी नहीं धुला है। इसके परिणाम कांग्रेस पार्टी आज भी भुगत रही है, लेकिन ये जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि आखिर देश के अंदर किन हालात में आपातकाल लगाया गया था और इसे लगाने से सरकार और देश को क्या मिला ?

इमरजेंसी के दो बड़े कारण

आपको बता दें कि इमरजेंसी लगने के दो सबसे बड़े कारण थे जेपी आंदोलन और इंदिरा गांधी की लोकसभा सीट रायबरेली को अयोग्य घोषित करने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, जिसकी वजह से इंदिरा सरकार ने देश के अंदर आपातकाल लगा दिया।

तारीख 25 जून 1975 ये महज एक तारीख नहीं, बल्कि वो दिन है जहां से हिंदुस्तान की राजनीति में एक काला अध्याय जुड़ गया। 25 और 26 जून की रात को आपात काल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के आदेश के दस्तखत पर पूरे देश में आपातकाल लागू हो गया। अगले दिन रेडियो पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज में इमरजेंसी का संदेश सुना।

 

इंदिरा गांधी की सरकार में जनता महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की मार झेल रही थी। ये तीनों मुद्दे इंदिरा गांधी की सरकार में ऐसे थे जिनकी वजह से आपातकाल के पहले कारण जेपी आंदोलन को हवा मिली थी। इंदिरा के शासन में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी थी, जिसकी वजह से देश की जनता के अंदर भारी गुस्सा था। यहीं से जेपी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 72 साल के बुजुर्ग समाजवादी-सर्वोदयी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पीछे देश भर के छात्र-युवा अनुशासित तरीके से इकट्ठा होने लगे थे। गुजरात और बिहार से सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में भी जंगल की आग की तरह फैलने लगी। इस आंदोलन ने न सिर्फ राज्यों की कांग्रेसी सरकारों बल्कि केंद्र में सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी की सरकार को भी भीतर से झकझोर दिया था।

2 . क्या था हाईकोर्ट का फैसला

इसी बीच में 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी की लोकसभा सीट रायबरेली को अयोग्य घोषित कर दिया था। इस सीट पर इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े समाजवादी नेता राजनारायण ने नतीजों को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका डाली थी, जिसको लेकर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह सालों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था। इंदिरा गांधी को बड़ा झटका तब लगा, जब 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी। वह लोकसभा में जा सकती थीं लेकिन वोट नहीं कर सकती थीं।

तमाम बड़े नेताओं को जेल की खानी पड़ी हवा

आपातकाल लगाए जाने के बाद सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजीदेशाई जैसे तमाम बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। हालात ऐसे थे कि बिना सरकार के आदेश के अखबार तक छापना मुमकिन नहीं था। उस दौर में देश की जेलें एक तरह से राजनीतिक पाठशाला बन गई थीं। बड़े नेताओं के साथ युवा नेताओं को काफी सीखने और समझने का मौका मिला। एक तरफ जहां नेताओं की नई पौध राजनीति सीख रही थी वहीं दूसरी तरफ इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने देश को आगे बढाने के नाम पर पांच सूत्रीय एजेंडे का काम करना शुरू कर दिया। इसी में से एक था परिवार नियोजन। कहा जाता है कि 19 महीने के दौरान पूरे देश में करीब 83 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करा दी गई।

इंदिरा और संजय हारे चुनाव

हालांकि 19 महीने बीत जाने के बाद 18 जनवरी 1977 को देश में मार्च महीने में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। हालांकि 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और उनके बेटे संजय को इलेक्शन में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। चुनाव के 6 दिन बाद पूरे देश में आपातकाल खत्म कर दिया गया, लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।

आपातकाल और पीएम मोदी


आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई थी। आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता छीनी जा चुकी थी। कई पत्रकारों को मीसा और डीआईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। सरकार की कोशिश थी कि लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचे। उस कठिन समय में नरेंद्र मोदी और आरएसएस के कुछ प्रचारकों ने सूचना के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठा ली। इसके लिए उन्होंने अनोखा तरीका अपनाया। संविधान, कानून, कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों के बारे में जानकारी देने वाले साहित्य गुजरात से दूसरे राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में रखे गए। यह एक जोखिम भरा काम था क्योंकि रेलवे पुलिस बल को संदिग्ध लोगों को गोली मारने का निर्देश दिया गया था। लेकिन नरेंद्र मोदी और अन्य प्रचारकों द्वारा इस्तेमाल की गई तकनीक कारगर रही।