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विपक्ष चिल्लाता रहा और लोकसभा में पास हो गया नागरिकता संशोधन बिल, जल्द तीन देशों के हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध और पारसियों को मिलेगी भारत की नागरिकता

नई दिल्लीः नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा ने मंजूरी दे दी है। इस बिल के पक्ष में 311 वोट पड़े, जबकि 80 सांसदों ने इसके खिलाफ मतदान किया। अब इस बिल को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों को इस बिल में नागरिकता देने का प्रस्ताव है। इस बिल में इन तीनों देशों से आने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता का प्रस्ताव है।

जेडीयू और एलजेपी जैसी सहयोगी पार्टियों ने बिल के पक्ष में वोट किया वहीं शिवसेना, बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी गैर बीजेपी पार्टियों ने भी बिल के पक्ष में ही वोट दिया। लोकसभा में बिल पास होने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस पर खुशी जताई। पीएम ने कहा, ‘नागरिकता संशोधन बिल पास होने पर खुश हूं। मैं बिल का समर्थन करने वाले सांसदों और पार्टियों का धन्यवाद करता हूं।’ पीएम मोदी ने बिल पास कराने के लिए गृह मंत्री अमित शाह को भी बधाई दी। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने सदन में सभी सदस्यों के सवालों के विस्तार से जवाब दिए।

जेडीयू, बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस जैसे दलों की ओर से लोकसभा में बिल का समर्थन किए जाने के बाद अब उच्च सदन से भी इसके पास होने की उम्मीद बढ़ गई है। इससे पहले बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक लाखों करोड़ों लोगों को यातना से मुक्ति देगा। उन्होंने कहा कि यह बिल किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं है बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए है।

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक
नागरिकता (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य छह समुदायों – हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी – के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है। बिल के जरिए मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा, ताकि चुनिंदा वर्गों के गैरकानूनी प्रवासियों को छूट प्रदान की जा सके। चूंकि इस विधेयक में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए विपक्ष ने बिल को भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उसकी आलोचना की है।

ख़बरों के अनुसार, नए विधेयक में अन्य संशोधन भी किए गए हैं, ताकि ‘गैरकानूनी रूप से भारत में घुसे’ लोगों तथा पड़ोसी देशों में धार्मिक अत्याचारों का शिकार होकर भारत में शरण लेने वाले लोगों में स्पष्ट रूप से अंतर किया जा सके। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है, और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है।