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स्त्री और पुरुष दोनों एक गाड़ी के पहिए के समान, दोनों एक साथ चलेंगे तभी जीवन रुपी गाड़ी अच्छे से चल सकेगीः साध्वी

जालंधरः श्री राम कृष्ण आराधना मंच पंजाब की ओर से श्री विश्वर्कमा मंदिर टांडा में पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया जा रहा है। 12 से 16 मार्च तक चलने वाली इस कथा का समय सांय 7 से 10 बजे तक का था। आज पाँचवे और अंतिम दिवस की सभा में साध्वी सौम्या भारती जी ने श्री कृष्ण और रूकमणी जी के विवाह प्रसंग को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण भाव परमात्मा और रूकमनी भाव आत्मा लेकिन आज मानव अपने वास्तविक सत्य से अनभिज्ञ है। मननशील प्राणी होते हुए भी वह उस बात पर विचार नही करता जिस पर मनन करने से उसे अपने जीवन का लक्ष्य मिल सकता है। मनुष्य समाज दो भागों में बंटा हुआ है नर और नारी। नर की उन्नति, सुविधा और सुरक्षा के लिए तो प्रयत्न किया जाता है, परन्तु नारी हर क्षेत्र में पिछड़ी है। जिस रथ का एक पहिया बड़ा और दूसरा छोटा हो वह ठीक ढंग से नहीं चल सकता। हमारा देश, समाज, जाति तब तक सच्चे अर्थों में विकसित नहीं कहे जा सकते। जब तक नारी को भी नर के समान ही क्रियाशीलता और प्रतिभा प्रकट करने का अवसर न मिले।

भारतीय संस्कृति में स्त्री व पुरूष दोंनों को एक गाड़ी के दो पहियों की तरह माना गया था। दोंनों पहिए साथ-साथ और बराबर चलेंगें तभी जीवन रूपी गाड़ी भली प्रकार अग्रसर हो सकती है। इसी दृष्टि से स्त्री को पुरूष की अर्धांगिनी कहा गया था। शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि पत्नी पुरूष की आत्मा का आधा भाग है। महाभारत में भी लिखा है कि भार्या पुरूष का आधा भाग व उसका श्रेष्ठतम मित्र है। वही त्रिवर्ग की जड़ है और तारने वाली है।इसमें कोई सन्देह नहीं कि वर्तमान सामाजिक स्थिति में जहाँ अन्य विषयों में भारतीय समाज का पतन हुआ वहाँ स्त्रियों की स्थिति बहुत गिर गई। महिलाओं के प्रति ऐसा किसी एक समाज या एक जगह का मुद्दा नहीं है बल्कि ये समाज के हर वर्ग की बात है। जब कोई मुद्दा समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है और इसीलिए उस मुद्दे पर गौर करना आवश्यक भी हो जाता है। कहीं इज्जत के नाम पर महिलाओं पर हिंसा होती है तो कहीं शारीरिक मर्यादा को लेकर। कहीं सिर्फ महिला होने की वजह से उसका सम्पत्ति की तरह उपयोग होता है तो कहीं महिला होने की वजह से ही वो जीने का अधिकार भी खो देती है।

हिंसा चाहे शारीरिक हो, मानसिक हो या यौनिक हो किसी भी प्रकार की हो कारण सत्ता ही होती है। इस हिंसा में न सिर्फ महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है बल्कि ये उनके मानव अधिकारों का उल्लघंन भी है। अंत मे साध्वी जी ने उपस्थित जनसमूह को बताया कि राजा परीक्षित की मुक्ति केवल कृष्ण लीलाओं को श्रवण करने से नहीं अपितु प्रभु को तत्व से जान लेने से हुई थी। उन्होंने शुकदेव मुनि द्वारा ब्रहमज्ञान प्राप्त किया था। और आज दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा ब्रहमज्ञान प्राप्त कर असंख्य लोंगों ने परीक्षित की तरह धर्म मुक्ति के मार्ग को अपनाया है।

कथा के दौरान श्री विजय साँपला जी (केंद्रीय राज्य मंत्री ,भारत सरकार), स्वामी सज्जनानंद जी, स्वामी सदानंद जी ,स्वामी बलराम जी डा मुकेश गुप्ता (एकस आई एम ए प्रैजीडेंट ,जालंधर),श्री जवाहर खूराना (एकस चैयरमैन पलानिंग र्बोड ), इंद्रजीत मेहता भोगपुर ,सुरेश कूमार जैन (एस एस जैन सभा) ,डा हरष दाहिया, सुशील मोंटू,विपन मरवाहा ,राजेश कूमार (बिटू बारदाना हाउस),डिपटी राय (डी के फ रनीचर हाउस), जसवंत राय (रतन कलाथ हाउस),पंकज तलवार ,संगर टैलीकाम ,ब्रिज मोहन अरोडा (बाबा बूटा भगत प्रबंधक कमेंटी ), आइशा ठाकुर (वैषणो कीर्तिन मंडलीमाता मंदिर), बलजीत मरवाहा, सन्नी मरवाहा, प्राचीन शिव मंदिर बेगोवाल विद्या सागर ,हरबंस सिंह शिवचरण (बाबा विश्वर्कमा मंदिर), प्रिंस जौली र्दूगा दास एंड संनस), प्रोफेसर पवन पालटा (रीयल लाइफ कलब ) जी ने दीप प्रजवलन की रसम को अदा किया।

इस अवसर पर साध्वी त्रिपुंड धारनी, योगिनी भारती जी, सदय़ा भारती, कत्रिका भारती जी, हरविंद्र भरती जी, रविंद्र भारती जी ने मधुर भजनों का गायन किया।