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एक ऐसा मंदिर जहां प्रसाद में मिलता है खून से भीगा कपड़ा, देशभर से पूजा के लिए पहुंचते हैं तांत्रिक

नई दिल्लीः आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहां भक्तों के प्रसाद के रुप में खून से भीगा हुआ कपड़ा मिलता है। भारत के उत्तर-पूर्व में बसे राज्य असम की राजधानी गुवाहटी के कामाख्या देवी मंदिर में आज से अंबूवाची मेले की शुरुआत हो चुकी है। ये मेला 26 जून तक चलेगा। कामाख्या देवी मंदिर को 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर में देवी सती या मां दुर्गा की मूर्ति नहीं है। पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों की मानें तो यहां देवी सती का योनि भाग गिरा था।

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हर साल 22 जून से 26 जून के बीच अम्बूवाची मेला आयोजित किया जाता है। कहा जाता है 3 दिनों के लिए माता कामाख्या रजस्वला होती हैं. इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है। कहा जाता है ऐसा मां कामाख्या के मासिक धर्म की वजह से होता है। अम्बूवाची के दौरान मंदिर 22 जून से 24 जून तक बंद रहता है इसके बाद 25 जून की सुबह मंदिर को खोला जाता है जिसके बाद पूजा-अर्चना की शुरुआत होती है। मंदिर बंद करने से पहले मां कामाख्या के आस-पास सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है।

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तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं तो ये कपड़ा लाल रंग से भीगा होता है। इसे अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है। इस भीगे कपड़े को ही प्रसाद के तौर पर वहां जाने वाले श्रद्धालुओं को दिया जाता है। कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। इसके पहले हिस्से में हर किसी को जाने की इजाज़त नहीं है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से पानी निकलता रहता है।

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कहा जाता है कि इस मंदिर के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करते हैं। काली और त्रिपुर सुंदरी के बाद मां कामाख्या तांत्रिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण देवी मानी जाती हैं। इसीलिए ये जगह तांत्रिकों का गढ़ मानी जाती है। यहां साल भर खास तौर पर अम्बुवाची मेले के दौरान तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता है। ये समय सिद्धि पाने के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। कामाख्या मन्दिर में अम्बूवाची के समय कुछ विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इस समय नदी में स्नान नहीं करना चाहिए। जमीन या मिट्टी को खोदना नहीं चाहिए और न ही कोई बीज बोना चाहिए। इन दिनों में यहां शंख और घंटी नहीं बजाते हैं। भक्त अन्न और जमीन के नीचे उगने वाली सब्जी और फलों का त्याग करते हैं। ब्रह्मचार्य का पालन करना बहुत जरूरी है। जितना ज्यादा हो सकता है अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करना चाहिए।