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धर्मनिरपेक्षता मतलब कपट ? धर्मांतरण विरोधी आखिरी सांस तक सड़ेगा जेल में और दिवाली पर रिहा कर दिया गया 16 साल से जेल में बन्द दुश्मन देश का जासूस जलालुद्दीन

PLN : तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का नँगा नाच एक बार फिर हुआ है, तथा दीपावली का तोहफा दिया गया है उस जलालुद्दीन को जो हिंदुस्तान की तबाही के लिए पाकिस्तान से भारत आया था। 16 साल से जेल में बंद देश के दुश्मन पाकिस्तानी जलालुद्दीन को रिहा कर दिया गया है। एकतरफ पाकिस्तान है जो आये दिन सीमा पर घुसपैठ कर रहा है, भारतीय सैनिकों की जान ले रहा है वहीं दूसरी तरफ हिंदुस्तान कुटिल धर्मनिरपेक्षता का खेल खेल रहा है तथा जलालुद्दीन को रिहा कर दिया गया है।

बता दें कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत के ठट्ठी जिले के बिलालनगर कॉलोनी थाना गरीबाबाद के रहने वाले जलालुद्दीन उर्फ जलालु को 2001 में कैंटोनमेंट एरिया में एयरफोर्स के ऑफिस के पास से कुछ संदिग्ध डाक्यूमेंट्स के साथ गिरफ्तार किया गया था। जलालुद्दीन के पास से यहां मौजूद आर्मी कैंप के अलावा कई महत्वपूर्ण जगहों के नक्शे भी बरामद हुए थे। 2003 में जलालुद्दीन को कोर्ट ने 33 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी, जिसके बाद से वह अब तक जेल में बंद था. इसके बाद कोर्ट ने जलालुद्दीन की सजा को कम करके 16 साल कर दिया था और अब तो जलालुद्दीन को रिहा ही कर दिया गया है।

आश्चर्य देखिये, एकतरफ पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को किसी भी हालात में फांसी देने पर आमादा है वहीं भारत कथित धर्मनिरपेक्षता का खेल खेल रहा है। अफ़सोस होता है जब जलालुद्दीन जैसे देश के दुश्मनों को तो रिहा कर दिया जाता है लेकिन 20 साल से उड़ीसा की जेल में बंद दारा सिंह के लिए कोई आवाज तक नहीं उठती। धर्मांतरण के खिलाफ बुलंद आवाज बन कर दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ दारा सिंह शायद ही इस जन्म में अब अपनी सांस स्वतंत्र हवा में ले सके क्योकि उसकी रिहायी का निर्णय करने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष हैं जो पाकिस्तानी जलालुद्दीन को तो छोड़ सकते हैं लेकिन दारा सिंह को नहीं।

तमाम प्रयासों के बाद भी दारा सिंह पर गठित वधवा आयोग ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश कर सका जिससे दारा सिंह को दोषी साबित किया जा सके … जब वधवा आयोग ने अपनी निष्पक्ष रिपोर्ट पेश की तब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष टीम ने इस आयोग पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। वधवा आयोग की विश्वसनीयता, उसकी निष्पक्षता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया और एक ऐसी पुस्तक छाप दी गयी जिसके विमोचन में कुछ महीने प्रधानमंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल तक पहुंच गए … यहां ये सवाल पैदा होता है कि क्या दारा के लिए होली दिवाली नहीं बनी है ? दुश्मन जलालुद्दीन को तो सरकार ने रिहा कर दिया लेकिन जिस दारा के माता पिता एक एक कर के चल बसे उस दारा को उनके अंतिम संस्कार तक में जाने का समय नहीं दिया गया। दारा सिंह भी जलालुद्दीन की रिहाई की खबर सुन कर सोचता होगा कि उसमें और जलालुद्दीन में मजहब के अलावा और क्या अंतर है ???