You are currently viewing चंडीगढ़ पहुंचे 4 ‘चिनूक’ हेलीकॉप्टर देखकर डरा चीन-पाकिस्तान, ओसामा बिन लादेन के खात्मे के लिए हुआ था ‘चिनूक’ का इस्तेमाल, भारत की हवाई ताकत बढ़ी कई गुणा , जानें चिनूक के बारे में ये खास बातें

चंडीगढ़ पहुंचे 4 ‘चिनूक’ हेलीकॉप्टर देखकर डरा चीन-पाकिस्तान, ओसामा बिन लादेन के खात्मे के लिए हुआ था ‘चिनूक’ का इस्तेमाल, भारत की हवाई ताकत बढ़ी कई गुणा , जानें चिनूक के बारे में ये खास बातें

आज भारतीय वायुसेना की ताकत कई गुना बढ़ने जा रही है. अमेरिकी कंपनी बोइंग के एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट सिस्टम वाले चार चिनूक CH-47 एफ हेलीकॉप्टर्स को हवाई बेड़े में शामिल किया जा रहा है. सोमवार को चार हेलीकॉप्टर चंडीगढ़ स्थित वायुसेना स्टेशन पहुंचे। इस दौरान आयोजित कार्यक्रम में एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ भी पहुंचे।

लंबे वक्त से इन हेलिकॉप्टर्स का भारतीय वायुसेना को इंतज़ार था. हर तरह की भौगोलिक परिस्थितियों में चिनूक शानदार काम करता रहा है और यही वजह है कि अमेरिका समेत दुनिया की कई सेनाओं ने चिनूक को अपने बेड़े में शान से शामिल किया है. वियतनाम से लेकर लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान और इराक हर जगह चिनूक पहुंचा और मिशन को अंजाम दिया. यहां तक कि एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के खात्मे के लिए चलाए गए ऑपरेशन की बैक अप टीम में भी चिनूक शामिल थे.

ताकतवर चिनूक हेलिकॉप्टर का जन्म

वैसे चिनूक की कहानी नई नहीं है बल्कि इसका इतिहास 1957 तक जाता है. दो इंजन वाले इस हेलिकॉप्टर का नाम चिनूक दरअसल मूल अमेरिकियों के नाम पर पड़ा है जिनका ठिकाना कभी आज के वॉशिंगटन के आसपास था. 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाले चिनूक को 1962 में ही अमेरिकी सेना ने अपना लिया था. कुछ खामियों को दूर करते हुए इसे आज दुनिया के सबसे प्रभावशाली हेलिकॉप्टर के तौर पर विकसित कर लिया गया है. इसे बोइंग रोटरक्राफ्ट सिस्‍टम ने बनाया है. रोटर ब्‍लैड, एंडवांस्‍ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्‍टम समेत कई दूसरे बदलावों के बाद चिनूक का वज़न काफी कम हो गया है. आज कंपनी इसके 15 वेरिएंट बेचती है.

पहले से है दुनिया चिनूक की दीवानी

ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा. ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर समेत 26 देश चिनूक के संतुष्ट ग्राहक हैं. सामान ढोने से लेकर सैन्य अभियानों तक में चिनूक अचूक है. MH और CH सीरीज़ के हेलिकॉप्टर एक दूसरे से अलग हैं. MH सीरीज़ के चिनूक तो हवा में ही तेल लेने की क्षमता रखते हैं. भारत जिस CH-47 वेरिएंट वाले चिनूक को खरीद रहा है उसकी अपनी सामरिक अहमियत है.

ऊंची से ऊंची जगहों पर ये सुगमता से पहुंचते हैं. लद्दाख जैसी जगहों पर ये बहुत काम आएंगे. इससे पहले भारत बाकी हथियारों की तरह हेलिकॉप्टर के मामले में भी रूस पर निर्भर था लेकिन दुनिया भर में चिनूक की फैली शोहरत के बाद भारतीय वायुसेना को इनसे महरूम रखना हर तरह से गलत होता. पुराने पड़ चुके Mi-17 अब चिनूक से रीप्लेस होंगे.

चिनूक तो सिर्फ झांकी है, अपाचे अभी बाकी है

साल 2015 में भारतीय पक्ष ने चिनूक की खरीदारी की प्रक्रिया का शुभारंभ किया. कुल 15 चिनूक खरीदना तय हुआ जिनमें से पहले चार भारत आ चुके हैं. गोले बारूद के साथ तीन सौ सैनिकों तक को एक साथ ले जाने की क्षमता रखनेवाले चिनूक के अलावा बोइंग कंपनी से 22 अपाचे हेलिकॉप्टर भी खरीदे गए हैं.  भारत को लगातार सीमाओं से मिल रही चुनौतियों की वजह से इनकी सख्त ज़रूरत है.